International Journal of Literacy and Education
2022, Vol. 2, Issue 1, Part A
दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानवदर्शन एवं वर्तमान योजनाओं में योगदान
Author(s): मोनिका रानी, डॉ० नवीनता रानी
Abstract: पं० दीनदयाल उपाध्याय भारत के सबसे ओजस्वी, तपसी एवं कीर्तिवान चिंतक रहे हैं। उनके चिंतन के मूल में लोकमंगल एवं राष्ट्र कल्याण का भाव समाविष्ट है। उन्होंने राष्ट्र को धर्म– कर्म, आत्मा–संबद्ध, एवं सभ्यता का सनातन पुंज बताते हुए राजनीति की नई व्याख्या को प्रतिपादित किया ।उनकी यह मान्यता थी कि यह तथ्य आधारित बोध, सनातन काल से चला आ रहा है। राष्ट्र, समय और दशा के अनुसार उसके अभिव्यक्त आकृति में कुछ अंतर दिखाई अवश्य दे सकता है, किंतु उससे कोई नवीन ज्ञान आविर्भूत नहीं होता।भारत में स्वतंत्रता से पूर्व जितने भी आंदोलन हुए उसका एक ही लक्ष्य था–स्वतंत्रता की प्राप्ति अर्थात आंग्लदेशी के बर्बर पंजों से मां भारती की आजादी।स्वराज्य के उपरांत हमारी दिशा क्या होगी, हम किस मार्ग से अपने जीवन की सार्थकता का श्रेष्ठतम रूप प्राप्त कर सकेंगे, कौन सा ऐसा विचार होगा जो हमारे एकत्रीकृत परिमार्जन में सहायक सिद्ध होगा, किस सिद्धांत का विवेचन कर हम व्यष्टि से समष्टि के रूप में अपनी खोई हुई गरिमा को प्राप्त कर सकेंगे। एक विचारणीय परन्तु महत्वपूर्ण तथ्य कि क्या होगा यदि यह दर्शन जिसके माध्यम से हम अर्वाचीन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रेरित हो एवं साथ ही अपनी महान सभ्यता को भी अविकल रख सकें। इसका अधिक विचार नहीं किया गया।
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मोनिका रानी, डॉ० नवीनता रानी. दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानवदर्शन एवं वर्तमान योजनाओं में योगदान. Int J Literacy Educ 2022;2(1):64-68.