International Journal of Literacy and Education
2024, Vol. 4, Issue 2, Part A
महिला आरक्षण बिल का अभिप्राय, इतिहास एवं विधिक अध्ययन
Author(s): Dr. Vinay Kumari Jain and Dr. Anju
Abstract: 21वीं सदी को महिलाओं की सदी से पुकारा जाने लगाहै। विकसित देश हो या विकासशील महिलाएँ पुरूषों के साथ कदम मिलाकर अपनी अंतनिर्हित क्षमता, आत्मविश्वास और साहस के साथ पुरूष प्रधान समाज में अपने अस्तित्व हेतु सफल प्रयास कर रहीं हैं। महिलाओं का पुरुष के समान राजनीतिक सहभागिता का प्रश्न वर्तमान समय का चर्चित एवं चिन्तनीय विषय है। प्रजातन्त्रीय युग स्त्री एवं पुरुष को समान जीवन जीने तथा उत्थान के समान अवसरों की अपेक्षा करता है। राजनीतिक समानता के अन्तर्गत न केवल वोट देने का समान अधिकार है, वरन् सत्ता के औपचारिक संस्थागत केन्द्रों के लिये चुने जाने की समानता भी निहित है। स्वतन्त्रता के पाँच दशक बीत जाने पर भी पिछले वर्षों के आँकड़ों से पता चलता है कि मतदाता के स्तर पर एक स्वीकार्य लिंग सम्बन्धी समानता दिखाई देती है, किन्तु सत्ता के ढाँचे में लिंग समानता का अभाव है।1 आज के युग में जहाँ मानवता शांति का प्रश्रय चाहती है। महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता समय की आवश्यकता बन गई है। नॉमर्न एच. नीई तथा सिडनी वर्वा के शब्दों में 'राजनीतिक सहभागिता आम लोगों की वे विधिसम्मत गतिविधियाँ हैं, जिनका उद्देश्य राजनीतिक पदाधिकारियों के चयन और उनके द्वारा लिये जाने वाले निर्णयों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करना होता है, किन्तु वर्तमान समय में लोकतन्त्रीय विकेन्द्रीकरण के कारण राजनीतिक सहभागिता मात्र मतदान एवं राजनीतिक सक्रियता तक सीमित नहीं है, बल्कि राजनीतिक सत्ता में भागीदारी से भी जुड़ गई है। सत्ता में भागीदारी होने का अर्थ है- शक्ति प्राप्त करना। वर्तमान में राजनीतिक सम्बन्धोंका अध्ययन शक्ति सम्बन्धों के अन्तर्गत ही किया जाता है और वैध शक्ति ही वह प्रमुख प्रक्रिया है जो समाज की अन्य उपव्यवस्थाओं एवं संरचनाओं को निर्देशित, संचालित एवं प्रभावित करती है। इसीलिये राजनीतिक सहभागिता महिला सशक्तिकरण हेतु एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
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How to cite this article:
Dr. Vinay Kumari Jain, Dr. Anju. महिला आरक्षण बिल का अभिप्राय, इतिहास एवं विधिक अध्ययन. Int J Literacy Educ 2024;4(2):26-32.